Thursday 31 March 2016

मेले में रौनक 2016

मकर संक्राती के चलते मेले में रौनक

 Date :- 13 Jan 2016
सोडलपुर. गुरू कान्हा बाबा मेले में गुरूवार को मकर संक्राती के चलते चहल-पहल बड़ गयी शाम तक हजारों की तादात में लोग मेले मे पहुंचे। मकर संक्राती के चलते मेले की गलियों में देर शाम तक भीड़ बनी 
 
फोटो। गुरू कान्हा बाबा मेले में मकर संक्राती के चलते आई रौनक। 
 
रही। ग्राम सहित क्षेत्र के से आये 
ग्रामीणो ने समाधि स्थल पर पहुंचकर प्रसाद चढ़कर फिर मेले की दुकानो पर पहुंचकर खरीददारी की मेले में सभी सामग्री की दुकाने सज्जी है।  वही मेले में मनोरंजन के लिये बड़े एवं छोटे झुले ,मौत का कुंआ, बच्चो के लिये मिक्की माउस पर भारी भीड़ दिनभर लगी रही। मेंला भी अब अपने पूरे सबाव पर आ गया है एक सप्ताह तक मेले में इसी तरह भीड़ चलती रहेगी। मकर संक्राति का पर्व होने से महिलाओं ने भी सामग्रियां खरीदी चुड़ी बाजार में दिनभर चहल-पहल बनी रही। विदित रहे कि संत गुरू कान्हा बाबा का मेला प्रतिवर्ष पूर्णिमा से प्रारंभ होता है जो लगभग एक माह तक चलता है जिसमे आसपास के क्षेत्र मे बड़ी संख्या मे लोग पहुंचते है।





गांव में आये चोरो की कहानी

गांव में आये चोरो की कहानी

पुराने लोग बताते है कि बहुत साल पहले की बात है जब हम गुलाम हुआ करते थे तब चोरो का गुट चलता था जिसे गांव वाले धड़ा वाले कहते थे वह बहुत खतरनाक व गांव के साहूकार के यहां से सब कुछ पहले ही बता कर गांव में आते थे। यह उन दिनां की बात है जब मेरे दादाजी की उम्र करीब 10-12 साल के होगें। यह मान सकते है कि करीब 75 वर्ष पहले की बात है। गांव के बाहर एक नदी है जिसे हम भुराली कहते है। धड़े वालो ने गांव में पहले ही खबर दे दी थी कि वो आने वाले है और वो जिस दिन आने वाले थे उस दिन पूरा गांव दहसत में था। गांव वाले रास्‍तो पर नजरे जमाये हुये उनका इंतजार कर रहे थे। पर वह नही आये ऐसा पहली बार हुआ था कि धड़े वालो ने कहा हो ओर उस गांव में वह नही पहुंचे। क्‍या आप जानते है वह क्‍यो नही आये ..................
गांव के बहार जो नदी पड़ती है उसे पार करते ही धड़े वालो को दिखाई देना बंद हो जाता और जब वह वापस घूमकर देखते तो उन्‍हे दिखाई देने लगता और जैसे ही गांव की तरफ देखते जो उन्‍हे कुछ दिखाई नही देता। वह रात भर इसी सोच में परेशान रहे कि यह क्‍या हो रहा है हमे दिखाई क्‍यो नही दे रहा है। तब उसमें एक व्‍यक्ति कहता है कि हे गुरू कान्‍हा बाबा हमसे जो भी गलती हुई है उसे माफ करो अब हम गांव की तरफ कभी आंख उठा कर नही देखेगें। इतना कहते ही उन्‍हे सब पहले की तरह ही दिखने लगता है और उस दिन के बाद कभी भी धड़ जिन्‍हे हम डाकू या चोर कहते है वह कभी हमारे गांव में नही आये। यह सब संत श्री गुरू कान्‍हा बाबा के चमत्‍तकार  के कारण हुआ था। आज भी गांव के लोग उन्‍हे श्रद्धा और विश्‍वास के साथ मानते व पूजते है।

गांव की याद में

शहर से लगा हुआ मेरा
प्यारा-सा गांव
गांव से जुड़ी हुई है
यादो की छांव 
                                      छांव में छुपी हुई 
                                      अनेक कहनाइयां
                                    जिसने तोड़ी हमेशा
                                    जिंदगी की ‍वीरानियां
 
वह बचपन के झूले
वह गांव के मेले
वह ट्रैक्टर की सवारी
वह पुरानी बैलगाड़ी
 
वह पुराना बरगद का पेड़
वह खेत की मेढ़
वह चिड़ियों का चहकना
वह फूलों का महकना
 
पर धीरे-धीरे गांव
बहुमंजिली इमारत में
तब्दील हो गया
वह कोलाहल और
गाड़ियों के शोर से
लबरेज हो गया
 
शेष रह गया केवल
गाड़ियों का धुआं
जिसे देख परेशान
हर व्यक्ति हुआ
 

सूरज अब जमीं के 
पास आ गया
भौतिकता का नशा
हर व्यक्ति पर छा गया

आदमी को आदमी से
न मिलने की है फुरसत
भाईचारा और इंसानियत
यहां कर रहे रुखसत

इस नए से
कोई अब तो निकाले
हे परमात्मा मुझे फिर से
मेरे पुराने गांव से मिला दे।

Wednesday 30 March 2016

गांव में क्रिकेट

लेदर बाल क्रिकेट टूर्नामेट सोडलपुर में 

दिनांक 28 नबंवर 2015

कान्‍हा बाबा मैदान पर आयोजन का एक हिस्‍सा 


सोडलपुरमें शनिवार से सोलह टीमो के बीच होने वाले लेदर बाल क्रिकेट टूर्नामेंट का शुभांरभ हुआ इस दौरान बड़ी संख्या में क्रिकेट प्रेमी उपस्थित थे। शुभांरभ के दौरान महंत शीतलदास जी द्वारा पिच पर पूजन कर क्रिकेट प्रारंभ किया। 

उद्घाटन मैच दोपहर एक बजे से कनेरा क्लब विदिशा और बराहनपुर के बीच खेला जाना था जिसमें टास जीतकर बराहनपुर ने पहले क्षेत्ररक्षण करने का निर्णय लिया। विदिशा ने बल्लेबाजी करते हुये निर्धारित 20 ओवरो में 201 रन 3 विकेट खोकर बनाये थे। विदिशा की ओर से नागेन्द्र ने शतकीय पारी खेलते हुये 104 रन बनाये जबाव में बल्लेबाजी करने उतरी बराहनपुर टीम ने सदी हुई शुरूवात की और मैच अंतिम ओवर में पहुंच गया अंतिम ओवर में 5 रनो की आवश्‍यकता थी लेकिन विदिशा की सदी हुई गेंदबाजी की बदौलत बुराहनपुर भी 201 रन ही बना पाई और मैच टाई हो गया इस मैच में दर्शको ने अच्‍छा खासा लुफ्त उठाया। अंतिम गेंद तक चले इस मैच में स्थिति बार बार बदल रही थी जिससे दर्शको का भरपूर मनोरंजन हुआ। टाई के चलते समिति द्वारा सुपर ओवर कराया गया इसमें बराहनपुर ने बल्लेबाजी करते हुये निर्धारित एक ओवर में 2 रन ही बना पाई जबाव में विदिशा की ओर से आये खिलाड़ी ने पहली ही गेंद पर चैका लगाकर विजयश्री टीम को दिला दी। इस लेदर बाल टूर्नामेट में प्रथम विजेता टीम को 21001 रूपये व द्वितीय पुरूस्कार 10001 रूपये था। इसके अलावा बेस्ट दर्शक, बेस्ट फिल्डर, बेस्ट कीपर, बेस्ट कामेन्टेटर, बेस्ट बल्लेबाज, मैन आफ दी सीरीज, मैन आॅफ दी मैच सहित कई आकर्षक पुरूस्कार भी दिये जाने थे। 

मक्का की खेती

मक्का खरीफ ऋतु की फसल है, परन्तु हां सिचाई के साधन हैं वहां रबी और खरीफ की अगेती फसल के रूप मे ली जा सकती है। मक्का कार्बोहाइड्रेट का बहुत अच्छा स्रोत है। यह एक बहपयोगी फसल है व मनुष्य के साथ- साथ पशुओं के आहार का प्रमुख अवयव भी है तथा औद्योगिक दृष्टिकोण से इसका महत्वपूर्ण स्थान भी है। चपाती
के रूप मे, भुट्टे सेंककर, मधु मक्का को उबालकर कॉर्नफलेक्स पॉपकार्न लइया के रूप मे आदि के साथ-साथ अब मक्का का उपयोग कार्ड आइल, बायोफयूल के लिए भी होने लगा है। लगभग 65 प्रतिशत मक्का का उपयोग मुर्गी एवं पशु आहार के रूप मे किया जाता है। साथ ही साथ इससे पौष्टिक रूचिकर चारा प्राप्त होता है। भुट्टे काटने के बाद बची हुई कडवी पशुओं को चारे के रूप मे खिलाते हैं। औद्योगिक दृष्टि से मक्का मे प्रोटिनेक्स, चॉक्लेट पेन्ट्स स्याही लोशन स्टार्च कोका-कोला के लिए कॉर्न सिरप आदि बनने लगा है। बेबीकार्न मक्का से प्राप्त होने वाले बिना परागित भुट्टों को ही कहा जाता है। बेबीकार्न का पौष्टिक मूल्य अन्य सब्जियों से अधिक है।


जलवायु एवं भूमि:-
मक्का उष्ण एवं आर्द जलवायु की फसल है। इसके लिए ऐसी भूमि जहां पानी का निकास अच्छा हो उपयुक्त होती है।
खेत की तैयारी :-
खेत की तैयारी के लिए पहला पानी गिरने के बाद जून माह मे हेरो करने के बाद पाटा चला देना चाहिए। यदि गोबर के खाद का प्रयोग करना हो तो पूर्ण रूप से सड़ी हुई खाद अन्तिम जुताई के समय जमीन मे मिला दें। रबी के मौसम मे कल्टीवेटर से दो बार जुताई करने के उपरांत दो बार हैरो करना चाहिए।
बुवाई का समय :-
1. खरीफ :- जून से जुलाई तक।
2. रबी :- अक्टूबर से नवम्बर तक।
3. जायद :- फरवरी से मार्च तक।
किस्म :-
क्र.
संकर किस्म

अवधि (दिन मे)

उत्पादन (क्ंवि/हे.)

1

गंगा-5

100-105

50-80

2

डेक्कन-101

105-115

60-65

3

गंगा सफेद-2

105-110

50-55

4

गंगा-11

100-105

60-70

5

डेक्कन-103

110-115

60-65

 कम्पोजिट जातियां :-
  • सामान्य अवधि वाली- चंदन मक्का-1
  • जल्दी पकने वाली- चंदन मक्का-3
  • अत्यंत जल्दी पकने वाली- चंदन सफेद मक्का-2
बीज की मात्रा :-
  • संकर जातियां :- 12 से 15 किलो/हे.
  • कम्पोजिट जातियां :- 15 से 20 किलो/हे.
  • हरे चारे के लिए :- 40 से 45 किलो/हे.
     (छोटे या बड़े दानो के अनुसार भी बीज की मात्रा कम या अधिक होती है।) 
बीजोपचार :-
बीज को बोने से पूर्व किसी फंफूदनाशक दवा जैसे थायरम या एग्रोसेन जी.एन. 2.5-3 ग्रा./कि. बीज का दर से उपचारीत करके बोना चाहिए। एजोस्पाइरिलम या पी.एस.बी.कल्चर 5-10 ग्राम प्रति किलो बीज का उपचार करें।
पौध अंतरण :-
  1. शीघ्र पकने वाली:- कतार से कतार-60 से.मी. पौधे से पौधे-20 से.मी.
  2. मध्यम/देरी से पकने वाली :- कतार से कतार-75 से.मी. पौधे से पौधे-25 से.मी.
  3. हरे चारे के लिए :- कतार से कतार:- 40 से.मी. पौधे से पौधे-25 से.मी.
बुवाई का तरीका :-
वर्षा प्रारंभ होने पर मक्का बोना चाहिए। सिंचाई का साधन हो तो 10 से 15 दिन पूर्व ही बोनी करनी चाहिये इससे पैदावार मे वृध्दि होती है। बीज की बुवाई मेंड़ के किनारे व उपर 3-5 से.मी. की गहराई पर करनी चाहिए। बुवाई के एक माह पश्चात मिट्टी चढ़ाने का कार्य करना चाहिए। बुवाई किसी भी विधी से की जाय परन्तु खेत मे पौधों की संख्या 55-80 हजार/हेक्टेयर रखना चाहिए। 
खाद एवं उर्वरक की मात्रा :-
  • शीघ्र पकने वाली :- 80 : 50 : 30 (N:P:K)
  • मध्यम पकने वाली :- 120 : 60 : 40 (N:P:K)
  • देरी से पकने वाली :- 120 : 75 : 50 (N:P:K)
 भूमि की तैयारी करते समय 5 से 8 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद खेत मे मिलाना चाहिए तथा भूमि परीक्षण उपरांत जहां जस्ते की कमी हो वहां 25 कि.ग्रा./हे जिंक सल्फेट वर्षा से पूर्व डालना चाहिए। 
खाद एवं उर्वरक देने की विधी :-
1. नत्रजन :-
  • 1/3 मात्रा बुवाई के समय, (आधार खाद के रूप मे)
  • 1/3 मात्रा लगभग एक माह बाद, (साइड ड्रेसिंग के रूप में)
  • 1/3 मात्रा नरपुष्प (मंझरी) आने से पहले
2. फास्फोरस व पोटाश :-
इनकी पुरी मात्रा बुवाई के समय बीज से 5 से.मी. नीचे डालना चाहिए। चुकी मिट्टी मे इनकी गतिशीलता कम होती है, अत: इनका निवेशन ऐसी जगह पर करना आवश्यक होता है जहां पौधो की जड़ें हो। 
निंदाई-गुड़ाई :-
बोने के 15-20 दिन बाद डोरा चलाकर निंदाई-गुड़ाई करनी चाहिए या रासायनिक निंदानाशक मे एट्राजीन नामक निंदानाशक का प्रयोग करना चाहिए। एट्राजीन का उपयोग हेतु अंकुरण पूर्व 600-800 ग्रा./एकड़ की दर से छिड़काव करें। इसके उपरांत लगभग 25-30 दिन बाद मिट्टी चढावें।
अन्तरवर्ती फसलें :-
मक्का के मुख्य फसल के बीच निम्नानुसार अन्तरवर्ती फसलें लीं जा सकती है :-
मक्का           :                उड़द, बरबटी, ग्वार, मूंग (दलहन)
मक्का           :                सोयाबीन, तिल (तिलहन)
मक्का           :                सेम, भिण्डी, हरा धनिया (सब्जी)
मक्का           :                बरबटी, ग्वार (चारा)

सिंचाई :-
मक्का के फसल को पुरे फसल अवधि मे लगभग 400-600 mm पानी की आवश्यकता होती है तथा इसकी सिंचाई की महत्वपूर्ण अवस्था (Critical stages of irrigation) पुष्पन और दाने भरने का समय (Silking and cob development) है। इसके अलावा खेत मे पानी का निकासी भी अतिआवश्यक है। 
पौध संरक्षण :-
(क) कीट प्रबन्धन :
1. मक्का का धब्बेदार तनाबेधक कीट :-     इस कीट की इल्ली पौधे की जड़ को छोड़कर समस्त भागों को प्रभावित करती है। सर्वप्रथम इल्ली तने को छेद करती है तथा प्रभावित पौधे की पत्ती एवं दानों को भी नुकसान करती है। इसके नुकसान से पौधा बौना हो जाता है एवं प्रभावित पौधों में दाने नहीं बनते है। प्रारंभिक अवस्था में डैड हार्ट (सूखा तना) बनता है एवं इसे पौधे के निचले स्थान के दुर्गध से पहचाना जा सकता है।
2. गुलाबी तनाबेधक कीट :- इस कीट की इल्ली तने के मध्य भाग को नुकसान पहुंचाती है फलस्वरूप मध्य तने से डैड हार्ट का निर्माण होता है जिस पर दाने नहीं आते है।
उक्त कीट प्रबंधन हेतु निम्न उपाय है :-
  • फसल कटाई के समय खेत में गहरी जुताई करनी चाहिये जिससे पौधे के अवशेष व कीट के प्यूपा अवस्था नष्ट हो जाये।
  • मक्का की कीट प्रतिरोधी प्रजाति का उपयोग करना चाहिए।
  • मक्का की बुआई मानसुन की पहली बारिश के बाद करना चाहिए।
  • एक ही कीटनाशक का उपयोग बार-बार नहीं करना चाहिए।
  • प्रकाश प्रपंच का उपयोग सायं 6.30 बजे से रात्रि 10.30 बजे तक करना चाहिए।
  • मक्का फसल के बाद ऐसी फसल लगानी चाहिए जिसमें कीटव्याधि मक्का की फसल से भिन्नहो।
  • जिन खेतों पर तना मक्खी, सफेद भृंग, दीमक एवं कटुवा इल्ली का प्रकोप प्रत्येक वर्ष दिखता है, वहाँ दानेदार दवा फोरेट 10 जी. को 10 कि.ग्रा./हे. की दर से बुवाई के समय बीज के नीचे डालें।
  • तनाछेदक के नियंत्रण के लिये अंकुरण के 15 दिनों बाद फसल पर क्विनालफास 25 ई.सी. का 800 मि.ली./हे. अथवा कार्बोरिल 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. का 1.2 कि.ग्रा./हे. की दर से छिड़काव करना चाहिए। इसके 15 दिनों बाद 8 कि.ग्रा. क्विनालफास 5 जी. अथवा फोरेट 10 जी. को 12 कि.ग्रा. रेत में मिलाकर एक हेक्टेयर खेत में पत्तों के गुच्छों में डालें।
(ख) मक्का के प्रमुख रोग :-
1. डाउनी मिल्डयू :- बोने के 2-3 सप्ताह पश्चात यह रोग लगता है सर्वप्रथम पर्णहरिम का ह्रास होने से पत्तियों पर धारियां पड़ जाती है, प्रभावित हिस्से सफेद रूई जैसे नजर आने लगते है, पौधे की बढ़वार रूक जाती है।
उपचार :-  डायथेन एम-45 दवा आवश्यक पानी में घोलकर 3-4 छिड़काव करना चाहिए।
2. पत्तियों का झुलसा रोग :- पत्तियों पर लम्बे नाव के आकार के भूरे धब्बे बनते हैं। रोग नीचे की पत्तियों से बढ़कर ऊपर की पत्तियों पर फैलता हैं। नीचे की पत्तियां रोग द्वारा पूरी तरह सूख जाती है।
उपचार :- रोग के लक्षण दिखते ही जिनेब का 0.12% के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
3. तना सड़न :- पौधों की निचली गांठ से रोग संक्रमण प्रारंभ होता हैं तथा विगलन की स्थिति निर्मित होती हैं एवं पौधे के सड़े भाग से गंध आने लगती है। पौधों की पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं व पौधे कमजोर होकर गिर जाते है।
उपचार :- 150 ग्रा. केप्टान को 100 ली. पानी मे घोलकर जड़ों पर डालना चाहिये।
उपज :-
1. शीघ्र पकने वाली :- 50-60 क्ंविटल/हेक्टेयर
2. मध्यम पकने वाली :- 60-65 क्ंविटल/हेक्टेयर
3. देरी से पकने वाली :- 65-70 क्ंविटल/हेक्टेयर
फसल की कटाई व गहाई :-
फसल अवधि पूर्ण होने के पश्चात अर्थात् चारे वाली फसल बोने के 60-65 दिन बाद, दाने वाली देशी किस्म बोने के 75-85 दिन बाद, व संकर एवं संकुल किस्म बोने के 90-115 दिन बाद तथा दाने मे लगभग 25 प्रतिशत् तक नमी हाने पर कटाई करनी चाहिए।
कटाई के बाद मक्का फसल में सबसे महत्वपूर्ण कार्य गहाई है इसमें दाने निकालने के लिये सेलर का उपयोग किया जाता है। सेलर नहीं होने की अवस्था में साधारण थ्रेशर में सुधार कर मक्का की गहाई की जा सकती है इसमें मक्के के भुट्टे के छिलके निकालने की आवश्यकता नहीं है। सीधे भुट्टे सुखे होने पर थ्रेशर में डालकर गहाई की जा सकती है साथ ही दाने का कटाव भी नहीं होता।
भण्डारण :-
कटाई व गहाई के पश्चात प्राप्त दानों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर भण्डारित करना चाहिए। यदि दानों का उपयोग बीज के लिये करना हो तो इन्हें इतना सुखा लें कि आर्द्रता करीब 12 प्रतिशत रहे। खाने के लिये दानों को बॉस से बने बण्डों में या टीन से बने ड्रमों में रखना चाहिए तथा 3 ग्राम वाली एक क्विकफास की गोली प्रति क्विंटल दानों के हिसाब से ड्रम या बण्डों में रखें। रखते समय क्विकफास की गोली को किसी पतले कपडे में बॉधकर दानों के अन्दर डालें या एक ई.डी.बी. इंजेक्शन प्रति क्विंटल दानों के हिसाब से डालें। इंजेक्शन को चिमटी की सहायता से ड्रम में या बण्डों में आधी गहराई तक ले जाकर छोड़ दें और ढक्कन बन्द कर दें।

शीतला सप्तमी पर की महिलाओं ने की पूजा

शीतला सप्तमी पर की महिलाओं ने की पूजा, लगाया ठंडा भोग


दिनांक 30 मार्च 2016

सोडलपुर। शीतला सप्तमी पर महिलाऐं पूजन करती।

सोडलपुर सहित क्षेत्र की सभी मारवाड़ी समाज में चैत्र माह की पूजी जानी वाली शीतला सप्तमी की पूजन बुधवार को गांव-गांव में की गई। इस दौरान महिलाओं द्वारा एक दिन पहले बनाई गई प्रसादी का माता को भोग लगाया गया। ग्राम में यह पूजन पटेल मोहल्ले में स्थित शीतलामाता के मंदिर में सुबह से लेकर दोपहर तक की गई। जिसमें माताओं ने विधि विधान से पूजन कर आरती की और गेंहू से बन्ढे भरे गये और माता रानी को हलवा, पूरी का बासी भोजन का भोग लगाया गया। इस दौरान सैकड़ो महिलाओ ने मंदिर में पहुंचकर कहानी कथा कर प्रसाद ग्रहण किया।


गणगौर पर्व


क्षेत्र में गणगौर पर्व का हुआ शुभारंभ 

 
भगवान शिव और माता पार्वती के प्रतीक के रूप में राजा धणियर और रणुबाई की आराधना के पर्व पर सुहागिन महिलाएं प्रफुल्लित है। पति की लंबी आयु और परिवार की समृद्धि के लिए मनाए जाने वाले इस पर्व के संबंध में कहा कि वक्त भले ही बदल गया हो लेकिन परंपरा नहीं बदली।
इन महिलाओं ने कहा कि गणगौर पर्व मूलतः राजस्थान की मारवाड़ी संस्कृति का परिचायक है। बरसों पहले राजस्थान से ही यह पर्व शुरू हुआ था। तब से लेकर आज तक यह चला आ रहा है। विवाहित स्त्रियां सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए यह व्रत करती है। इसमें महिलाएं गणगौर माता का पूजन करती है। बगीचे में अपनी सहेलियों के साथ मिलकर हंसी ठिठौली करती हैं।
इसमें महिलाएं दोहे के रूप में अपने पति का नाम लेती है। हालांकि समय के साथ थोड़ा बदलाव जरूर आया है। पहले गांवों तक यह व्रत सीमित था लेकिन अब शहर में भी बड़े पैमाने पर यह व्रत मनाया जाता है। चैत्र माह की तीज को भव्य चल समारोह के साथ गणगौर माता का विसर्जन होता है।
श्रद्धा और आस्था कायम है : आज भी व्रत को लेकर आस्था और श्रद्धा कायम है। विवाह के पहले साल युवतियां अपने पीहर में आकर व्रत मनाती है। 16 दिनों तक उत्साह का माहौल रहता है। शाम को सहेलियों के साथ बगीचे में जाकर मौज-मस्ती करती है। इस पर्व का सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है। जो पुराने गीत चल रहे हैं उन्हीं को महिलाओं द्वारा गाया जाता है। नए गीत नहीं लिखे जाते। पढ़ी-लिखी लड़कियां भी इस पर्व को उत्साह से मनाती है। राजस्थान का पर्व है। ऐसा माना जाता है कि शिवरात्रि के बाद माता पार्वती अपने पीहर आती है। उसी प्रतीक के रूप में पर्व मनाया जाता है। सभी विवाहित महिलाएं फूल पत्ती व द्रुप लेकर बगीचे में जाती है जहाँ गणगौर का पूजन होता है। यहाँ मेहंदी हल्दी जवारे चुनड़ी के साथ सुहाग के गीत गाए जाते हैं। पश्चात कहानी सुनाई जाती है।

आजकल की पढ़ी-लिखी यु‍वतियां भी पूरे उत्साह से पर्व को मनाती है। नीता बिंदल ने बताया कि समय के साथ गणगौर पर्व का उत्साह भी बढ़ता जा रहा है। खासकर सुहागिन महिलाएं सज धजकर आकर्षक श्रृंगार करती है तथा सहेलियों के साथ 16 दिनों तक मौज-मस्ती करती है। धार्मिक महत्व के अनुसार 16 दिनों तक घर में तरह तरह के पकवान बनाए जाते हैं।

* गौर गौर गणपति ईसर पूजे पार्वती
पार्वती के आला टिका गौर के सोने का टिका
माथे है रोली का टिका टिका दे चमका दे राजा राजना वरत करे।

* हल्दी गांठ गठीली ईसर राज की
ब्रह्मदास की बहू है हठीली
मांगी सोना री बिंदी बिंदी बेच घड़ाई बई पारो झमकाई।

* ऊंचो चोड्यो चोखण नो जल जमुना रो नीर मंगावो जी राज
जखे ईश्वर तापेड़ियां बाकी राण्या ने गौर पूजाओ जी राज।
गौर पूजन ता लूकेबे शायह या जोड़ी अबछल रखो जी राज
सदाचल राखो जी राज।

गणगौर के दौरान सभी महिलाएं बगीचे में एकत्र होकर गीत गाती है। ऊपर लिखे कुछ गीतों के मुखड़े का यही अर्थ है कि पति की लंबी उम्र के लिए महिलाएं गणगौर माता से प्रार्थना कर रही है। महिलाएं कहती है कि माता हमारी जोड़ी सदा बनी रहे।

Tuesday 29 March 2016

स्कूल के दिनो का क्रिकेट मैच

 स्कूल के दिनो का क्रिकेट मैच

दोस्तो में आज स्कूल के दिनो के क्रिकेट मैच की यादे आपके साथ शेयर कर रहा हूं । स्कूल के दिनो में बहुत से क्रिकेट मैच खेले पर वो मैच आज भी मेरे दिल और दिमाग में बसा हुआ है। मुझे शुरू से ही ही क्रिकेट में रूचि रही है यह मैच उस समय का है जब में कक्षा 9वी में पडता था। हमारा मैच कक्षा 10वी से था उस समय हमारी स्कूल की कक्षा 10वी की टीम बहुत मजबूत मानी जाती थी। टाॅस जीतकर हमारे कप्तान ने पहले बल्लेबाजी का निर्णय लिया। मैच के  शुरूवाती ओवरो में ही हमारे 5 प्रमुख विकेट गिर गये। अब कप्तान और मैं पिच पर थे सामने मजबूत विरोधी टीम के खतरनाक बालर धीरे-धीरे हमने खेलना प्रारंभ किया कुछ ओवर धीमे रहे पर जैसे ही मुझे गेंद दिखने लगी मेने विरोधी टीम पर हावी होने लगा वही दूसरे छोर से कप्तान भी दोनो की साझेदारी की बदौलत हम एक अच्छे और संघर्ष वाले स्कोर तक पहुंच गये। साथी खिलाडि़यो की बधाई के बाद जब हमारी गेंदबाजी आई तो उन्होने भी पलटवार करते हुये हमारे शुरूवाती गेदबाजो की जमकर खबर ली समझ में नही आ रहा था किसको ओवर दे किसको नही क्योकि विरोधी बल्लेबाज सभी गेंदबाजो की पिटाई लगा रहे थे। ऐसे में कप्तान ने मुझ पर भरोसा जताया मुझे गेदबाजी की बागडोर दी मेने पहले ही ओवर में हैट्रीक लगा दी जिससे हरा हुआ मैच हमारे पक्ष में आता हुआ नजर आ रहा था फिर मैच आगे बढा और मैच अंतिम ओवर तक चले गया। अंतिम ओवर में विपक्षी टीम को मात्र 5 रनो की जरूरत थी ओर गेंद मेंरे हाथो में कुछ समझ में नही आ रहा था कि मैच कैसे जीतेगें में नरमस भी था। ऐसे में कप्तान ने मुझसे एक ही बात कही मैच जीते या हारे तुझसे कोई कुछ नही कहेगा। बेफिक्र होकर गेद भेक और वह मैच मात्र एक रन से हम जीते। उस मैच के बाद में अपनी टीम का मेन प्लेयर बन गया।

यूएसए से आकर सोडलपुर में बालक किया मुंडन संस्कार


यूएसए से आकर सोडलपुर में बालक किया मुंडन संस्कार

विदेश में रहकर भी याद रख रहे अपने देश की संस्कृति

विदेश में रहने के बाद भी अपने गांव की याद आई ही जाती है। इंसान अपने जीवन में कही भी चले जाये लेकिन गांव की याद उसे किसी भी बहाने से गांव की ओर खिच ही लाती है। ऐसा ही मामला है गांव सोडलपुर में  अपनी पढ़ाई कर यूएसए जा चुके माहेश्वरी परिवार के नितिन माहेश्वरी उन दिनो यूएसए में आरकेट्रीक विप्रो प्रोजेक्ट में मेनेजर है और वह निजि कंपनी में अपनी सेवाये दे रहे थे। विदेश में रहने के बाद भी अपने देश की संस्कृति को याद रखते हुये अपने बच्चे का मुंडन संस्कार कराने के लिये अपने पैतृक गांव सोडलपुर पहुंचे। 

नितिन माहेश्‍वरी का परिवार
मंगलवार को ग्राम के कुईली वाले हनुमानजी पर पहुंचकर अपने बच्चे रियांस का मुंडन संस्कार पूरी रीति रिवाज के साथ सम्पन्न कराया गया। इस दौरान परिवार व समाज जन भी उपस्थित हुये। माहेश्वरी ने कक्षा पांचवी तक इसी गांव के सरस्वती शिशु विधा मंदिर में अपनी पढ़ाई की थी इन दिनो पूरा परिवार गांव छोड़कर इन्दौर चला गया है पिछले कुछ सालो से माहेश्वरी यूएसए में ही है।

किसान कल्याण योजना में युवा किसान को मिला सर्वोत्तम कृषक पुरूस्कार

किसान कल्याण योजना में आलमपुर के किसान को मिला सर्वोत्तम कृषक पुरूस्कार

दिनांक 01 फरवरी 2016

मुख्यमंत्री ने दिया प्रमाण-पत्र और 50 हजार का चैक

करीबी ग्राम आलमपुर के होनहार किसान जगदीश मांगीलाल सोनी को जिले का सर्वोत्तम पुरूस्कार रविवार को भोपाल में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान एवं मंत्रीगणो द्वारा दिया गया। यह पुरूस्कार किसान कल्याण योजना की सरकार सहायतित सब मिशन आन एग्रीकल्चर एक्सटेशन (एस.एम.ए.ई.)के तहत दिया गया है जिसमें प्रमाण-पत्र के साथ किसान को 50 हजार रू का चैक भी दिया गया है। यह पुरूस्कार किसान को
फोटो। मुख्यमंत्री और मंत्रीगण द्वारा किसान सोनी को प्रमाण-पत्र और चैक देते हुये।
रेजड़ वैट पद्धति से बोई सोयाबीन में अच्छे उत्पादन के लिये दिया गया है। किसान सोनी ने बताया कि उन्होने पहली बार रेजड़ वैट पद्धति से सोयाबीन बोई थी जो प्रति एकड़ 20 किग्रा सोेयाबीन बोई जिसका उत्पादन प्रति हेक्टयर 20 क्विटल निकला। वही किसानो का एक क्विटल प्रति एकड़ भी नही निकला था।
इधर विकासखण्ड में भी आत्मा परियोजना अंतर्गत सर्वोत्तम कृषक का पुरूस्कार 26 जनवरी को जिला कलेक्टर श्रीकांत बनोठ द्वारा दिया गया जिसमें सर्वोत्तम पशुपालन के लिये पवन पटेल गाड़ामोड, सर्वाेत्तम कृषक उधानिकी हेतु जयप्रकाश पटवारे नौसर, कृषक कृषि हेतु सुरेश गुर्जर अहलवाड़ा, मछली पालन हेतु नितीन चैरे पोखरनी, अभियांत्रिकी कृषक हेतु नवीन गुर्जर आलमपुर को प्रदान किया गया। 


नहर में पानी के लिये किसानो ने किया धरना प्रदर्शन

नहर में पानी के लिये किसानो ने किया धरना प्रदर्शन

दिनांक 29 मार्च 2016
क्षेत्र के किसानो को नहरो से आने वाले पानी की बड़ी उम्मीदे बनी हुई थी किन्तु शासन द्वारा उसका दायरा सीमित कर देने से कई किसान नहर के पानी से वंचित होते दिखाई दे रहे है। नहर विभाग द्वारा शासन की मंशा के अनुरूप नहरो की मुख्य शाखा में ही पानी दिया जा रहा है। जिसे लेकर किसानो में भारी आक्रोश पैदा हो रहा है। किसानो का कहना है कि यदि नहर देना ही है तो सभी किसानो को समान रूप से पानी मिले।

तीन दिवसीय धरना प्रदर्शन

29 मार्च 2016 दिन मंगलवार को इस बायी तट नहर की खिड़की माइनर पर सैकड़ो की संख्या में किसान धरना प्रदर्शन पर बैठ गये। किसानो का कहना है कि तीन दिवसीय इस धरना प्रदर्शन के अंतिम दिन आर-पार की लड़ाई लड़ी जायेगी। किसानो में शासन के प्रति भारी आक्रोश है। किसान संघर्ष समिति सोडलपुर द्वारा यह धरना प्रदर्शन किया जा रहा है। 



गांव में होती है बैलगाड़ी दौड़ प्रतियोगिता

गांव में होती है बैलगाड़ी दौड़ प्रतियोगिता


सोडलपुर में प्रति  बर्ष भी गोवर्धन पुजा के बाद बघई माता समिति द्वारा बैलगाड़ी दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन रखा जाता है इस प्रतियोगिता में जिले सहित अन्य जिलों की बैलगाडि़यों  हिस्सा लेने पहुचती है। जिसमें क्षेत्र की  पानी,रहटगांव,बघवाड़,करताना,उड़ा,रून्दलाय,बाबडि़या,की नामी बैलगाडि़या दौड़ मे शामिल होने पहुंचती है। लगातार 12 बर्षो से हो रही इस प्रतियोगिता का क्षेत्र बासियो को बड़ी ही बेशर्वी से इंतजार रहता है। समिति द्वारा विजय बैलगाडि़याे को ईनाम भी दिया जाता है।

वट वृक्ष से निकली प्राचीन मूर्तिया

नवरात्रि मे आस्था का केन्द्र बन जाती है प्राचीन खंडित देवी प्रतिमा


वट वृक्ष से निकली प्राचीन मूर्तिया 
ग्राम सोडलपुर  मे नवरात्रि की शुरूवात होते ही पुरा गांव भक्तिमय हो उठता है,हो भी क्यो नही क्योकि यहां एक स्थान ऐसा है जो नवरात्रि में सारे ग्रामीणो के लिए आस्था का केन्द्र बन जाता है। गांव के हर घर से यहां कोई न कोई भक्त जरूर अपनी अर्जी लगाने प्रतिदिन जल और पूजन करने जाते है।

नवरात्रि पर्व में सुबह से ही होने लगती है भक्‍तो की भीड़

यह स्थान बर्षो पुराना है जहां औरंगजेव के जमाने की प्राचीन खंडित देवी प्रतिमा एक विशाल वट वृक्ष की जड़ो से निकलती है जिन्हे ग्रामीणो ने वही पर एक ओटला बना कर उन्हे विराजमान कर दिया है जिसे आज नजदीकी मीठे पानी की कुईली के कारण कुईली बाली माता के नाम से जाना जा रहा है जहां शारदीय और चैत नवरात्र में सुवह से ही इतनी भीड़ लग जाती है कि भक्तो को आधे से एक घंटे तक पूजन के लिए इंतजार करना पड़ता है। इस गांव में कई विशाल मंदिर बर्षो पुराने है जहां हर हम धार्मिक आयोजन चलते रहते है।जिला प्रषासन को जल्द इस ओर ध्यान देकर व्यवस्था बनाना चाहिए।