क्षेत्र में गणगौर पर्व का हुआ शुभारंभ
भगवान शिव और माता पार्वती
के प्रतीक के रूप में राजा धणियर और रणुबाई की आराधना के पर्व पर सुहागिन महिलाएं प्रफुल्लित
है। पति की लंबी आयु और परिवार की समृद्धि के लिए मनाए जाने वाले इस पर्व के संबंध
में कहा कि वक्त भले ही बदल गया हो लेकिन परंपरा नहीं बदली।
इन महिलाओं ने कहा कि गणगौर पर्व मूलतः राजस्थान
की मारवाड़ी संस्कृति का परिचायक है। बरसों पहले राजस्थान से ही यह पर्व शुरू हुआ था।
तब से लेकर आज तक यह चला आ रहा है। विवाहित स्त्रियां सुहाग की लंबी उम्र की कामना
के लिए यह व्रत करती है। इसमें महिलाएं गणगौर माता का पूजन करती है। बगीचे में अपनी
सहेलियों के साथ मिलकर हंसी ठिठौली करती हैं।
इसमें महिलाएं दोहे के रूप में अपने पति का
नाम लेती है। हालांकि समय के साथ थोड़ा बदलाव जरूर आया है। पहले गांवों तक यह व्रत सीमित
था लेकिन अब शहर में भी बड़े पैमाने पर यह व्रत मनाया जाता है। चैत्र माह की तीज को
भव्य चल समारोह के साथ गणगौर माता का विसर्जन होता है।
श्रद्धा और आस्था कायम है : आज भी व्रत को लेकर
आस्था और श्रद्धा कायम है। विवाह के पहले साल युवतियां अपने पीहर में आकर व्रत मनाती
है। 16 दिनों तक उत्साह का
माहौल रहता है। शाम को सहेलियों के साथ बगीचे में जाकर मौज-मस्ती करती है। इस पर्व का सभी को बेसब्री
से इंतजार रहता है। जो पुराने गीत चल रहे हैं उन्हीं को महिलाओं द्वारा गाया जाता है।
नए गीत नहीं लिखे जाते। पढ़ी-लिखी लड़कियां भी इस पर्व को उत्साह से मनाती है। राजस्थान का पर्व है।
ऐसा माना जाता है कि शिवरात्रि के बाद माता पार्वती अपने पीहर आती है। उसी प्रतीक के
रूप में पर्व मनाया जाता है। सभी विवाहित महिलाएं फूल पत्ती व द्रुप लेकर बगीचे में जाती है जहाँ
गणगौर का पूजन होता है। यहाँ मेहंदी हल्दी जवारे चुनड़ी के साथ सुहाग के गीत गाए जाते हैं। पश्चात
कहानी सुनाई जाती है।
आजकल की पढ़ी-लिखी युवतियां भी पूरे उत्साह
से पर्व को मनाती है। नीता बिंदल ने बताया कि समय के साथ गणगौर पर्व का उत्साह भी बढ़ता
जा रहा है। खासकर सुहागिन महिलाएं सज धजकर आकर्षक श्रृंगार करती है तथा सहेलियों के
साथ 16 दिनों तक मौज-मस्ती
करती है। धार्मिक महत्व के अनुसार 16 दिनों तक घर में तरह तरह के पकवान बनाए जाते हैं।
* गौर गौर गणपति ईसर पूजे पार्वती
पार्वती के आला टिका गौर के सोने का टिका
माथे है रोली का टिका
टिका दे चमका दे राजा
राजना वरत करे।
* हल्दी गांठ गठीली ईसर राज की
ब्रह्मदास की बहू है हठीली
मांगी सोना री बिंदी बिंदी बेच घड़ाई बई पारो झमकाई।
* ऊंचो चोड्यो चोखण नो जल जमुना रो नीर मंगावो
जी राज
जखे ईश्वर तापेड़ियां बाकी राण्या ने गौर पूजाओ
जी राज।
गौर पूजन ता लूकेबे शायह या जोड़ी अबछल रखो जी
राज
सदाचल राखो जी राज।
गणगौर के दौरान सभी महिलाएं बगीचे में एकत्र
होकर गीत गाती है। ऊपर लिखे कुछ गीतों के मुखड़े का यही अर्थ है कि पति की लंबी उम्र
के लिए महिलाएं गणगौर माता से प्रार्थना कर रही है। महिलाएं कहती है कि माता हमारी
जोड़ी सदा बनी रहे।
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