Wednesday 18 May 2016

एक आलसी व्‍यक्ति कैसे करे काम

एक आलसी व्‍यक्ति कैसे करे काम -


कुछ करने को मन करता है, कैसे करे ये काम

पर सोच कर डर लगता है, कैसे करे ये काम

तकलीफ होगी तन और मन को, कैसे करे ये काम

करनी पड़गी मेहनत ये सोच डरता है मन, कैसे करे ये काम 

इस बार नही अगली बार करेगें, ये काम 

कुछ करने से पहले डरता है ये मन, कैसे करे ये काम

हाथ पैर दोनो को कष्‍ट, कैसे करे ये काम

अपनो से कहता हूं मेरी सुनो, पहले सोचो कैसे करे ये काम

काम के लिये समय नही, कैसे करे काम

काम से बचने में जो सुख मिलता है, वो करने में है कहां काम

जो सोचे आराम की वो कैसे करे काम

Tuesday 17 May 2016

वो स्‍कूल के दिन

आज फिर कुछ सालो बाद खुद से मुलाकात हुई                          
आज एहसास हुआ इस तन्‍हाई में, क्‍या खो दिया है इस भीड़ में
जिंदगी की रफ्तार में, कुछ पाने की होड़ में
पीछे छोड़ आया हूं सब कुछ, सिर्फ साथ है कुछ यादे, कुछ मस्‍ती भरी बाते
वो ठंड भरे दिन और बरसाते, याद आयेगें वो पुराने स्‍कूल के दिन
वो सड़क पर इमली तोड़ना, किसी के आने पर भागना
वो सब यारो के साथ, कक्षा में पीछे बैठना
मस्‍ती करना, आवाज निकालना इसके बाद गुरूजी की डाट सुनना।
स्‍कूल की कुछ बातें भूली हुई कुछ बीते हुये पल
और हर गलती का एक नया बहना फिर सबकी नजर में आना
सजा में कक्षा के बाहर खड़ा होना, लघुशंका के नाम पर पूरा स्‍कूल घूमना
मौका मिले तो कक्षा से गायब होना , उसकी एक झलक देखने रोज स्‍कूल जाना
देखते-देखते अटेडेन्‍स भूल जाना, फिर रोज एक नया बहाना
हर पल एक नया सपना, आज भी वे टुटे सपने है अपने
वो स्‍कूल के दिन, वो मुलाकाते और वो बातें
याद करके उन पलों को फिर जीने को दिल करता है

फिर मुस्‍कुराने को दिल करता है, आज फिर सभी से वैसे ही मिलने को मन करता है उसकी एक झलक पाने को मन करता है। 

Friday 13 May 2016

कोई दीवाना कहता है - कुमार विश्‍वास

कुमार विश्‍वास

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!

मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!

समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!

भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!

अटल बिहारी वाजपेेयी कविता

अटल बिहारी वाजपेेयी


कौरव कौन, कौन पांडव, टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि, का फैला कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं, जुए की लत है|
हर पंचायत में, पांचाली अपमानित है|
बिना कृष्ण के आज, महाभारत होना है,
कोई राजा बने, रंक को तो रोना है|

हरिवंश राय बच्चन मधुशाला

हरिवंश राय बच्चन

मधुशाला


मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।
मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।
मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।८।
मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।९।
सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।
जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११।
मेहंदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।१२।
हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३।
लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।१४।
जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।१५।
बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
'होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले'
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।१६।
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।
लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।१८।
बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'
'और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे'
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।१९।
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।२०।

Friday 6 May 2016

सुखरास में सोडलपुर ने जीता किक्रेट स्पर्धा में प्रथम पुरूस्कार

सुखरास में सोडलपुर ने जीता किक्रेट स्पर्धा में प्रथम पुरूस्कार


सोडलपुर। ग्राम सुखरास में आयोजित रात्रि कालीन टेनिस बाल किक्रेट प्रतियोगिता में यूथ फोरम सोडलपुर ने फायनल मुकाबले में रहटा को हराकर 13 हजार रूपये का प्रथम पुरूस्कार आर्दश कप ट्राफी के साथ जीता। इस रात्रि कालीन किक्रेट स्पर्धा का आयोजन सुखरास में किया गया था जिसमें सेमीफायनल मुकाबले में सोडलपुर ने हरदा को हराया और फायनल में पहुंचकर रहटा को शिकस्त दी। रहटा ने पहले बल्लेबाजी करते हुये 39 रन निर्धारित ओवरो में बनाये जबाव में उतरी सोडलपुर ने एक विकेट खोकर उक्त लक्ष्य आसानी से पा लिया ओर 9 विकेट से फायनल मैच विजेता बने। मैन आॅफ दी मैच विक्रम राठौर को दिया गया।