Sunday 3 April 2016

आस्था और विश्वास का त्यौहार है गणगौर

हाईटेक होते युग में बदला गणगौर का स्वरूप

आस्था और विश्वास का त्यौहार है रनुबाई


करीब दो दशक पहले सादगी के रूप में मनाया जाने वाला गणगौर उत्सव का स्वरूप हाईटेक होते जमाने के साथ बदल गया हालाकि इस पर्व को मनाने में लोगो की आस्था और विश्वास तो वही है लेकिन इसकी व्यवस्था और रंगीन चमक दमक पर भी अब लाखो रूपये खर्च किये जा रहे है।
आकर्षक पंडाल, लाईटिंग व रोशनी पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। आधुनिककरण के इस दौर में रात्रि के दौरान होने वाले रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमो में इसकी झलक साफ दिखाई देती है और नजारा भी बिल्कुल अगल और बदला हुआ दिखाई देता है। मालूम हो कि गणगौर पर्व भुआणा अंचल में वर्ष में दो बार चैत्र और बैशाख माह में मनाया जाता है। रनुबाई और धनियर राजा के इस त्यौहार में आस्था व विश्वास तो वही है लेकिन अब बदलते परिवेश के साथ यह उत्सव हाईटेक होता जा रहा है। रंगीन चकक-दमक वाली वेशभूषा, मंहगे पंडाल, डीजे साउंड ने इस उत्सव ने आस्था के साथ उल्लास ओर भी बड़ा दिया है। इन दिनो क्षेत्र सहित पूरे जिले भर में रनुबाई को पावनी बुलाया गया है। नौ दिनो तक गणैगौर उत्सव की धूम रहेगी।

शिव पार्वती का पर्व

गणगौर उत्सव मूलतः शिव व पार्वती का त्यौहार है यह पर्व गुजरात, राजस्थान की मिली जुली संस्कृति का पर्व है। मध्यप्रदेश में विशेषकर मालवा, निमाड़ और भुआंणा अंचल में इसे धूमधाम के साथ मनाया जाता है। भोपाल से लेकर इन्दौर जैसे बड़े महानगरो में भी इस आयोजन की धूम रहती है। इस आयोजन में धनियर राजा और रनुबाई के सुन्दर भजनो मधुर गीतो की धुन पर महिलाओं व पुरूषो का आकर्षक नृत्य व छालरा देखते ही बनता है जिससे ग्रामीण अंचल का बातावरण अलग ही निर्मित हो जाता है। मनोकामनाऐं पूरी होने पर लोग रनुबाई को पावनी बुलाते है।

ऐसे होती है पूजा अर्चना

बड़े बुर्जग बताते है कि रनुबाई माता पार्वती व धनियर राजा भगवान शिव के रूप में पूजे जाते है आयोजक परिवार के मुखिया रनुबाई के माता पिता बनते है नांदवा की सेवामाय मनोरमा पारे बताती है कि 9 दिनो तक विशेष पूजा अर्चना की जाती है। घर के एक कमरे में ज्वारे बोये जाते है जिसकी सेवा के लिये एक सेवामाय भी होती है वही इन ज्वारे की 9 दिनो तक सुहागन महिलाओं द्वारा पूजा अर्चना की जाती है जिसे गौर पूजना कहते है वही महिलाऐं दिन में आम के बगीचे में जाकर पाती भी खेलती है।

आठवे दिन लग्न, नौवे  दिन विदाई

गणगौर महाउत्सव के दौरान आठवे दिन धनियर राजा के रथो को विशेष तरीके से सजाकर विधि विधान के साथ कुऐ पर जाकर लग्न लगाई जाती है। नौवे दिन प्रसाद और भंडारे का आयोजन कर चल समारोह निकालकर धनियर राजा और रनुबाई के रथ व ज्वारो की गांवो में घर-घर पूजा की जाती है इसके बाद नदी पर जाकर विसर्जन किया जाता है विदाई के दौरान श्रद्धालु मानो अपनी बेटी की विदाई की जाती है। आंखो से वर्वस ही यह आंसू झलक पड़ते है।

No comments:

Post a Comment