कान्हा बाबा की कथा
श्रद्धा और विश्वास का प्रमुख केन्द्र- कान्हा बाबा समाधि जहां हर मन्नत होती है पूरी
सोडलपुर । चार सौ साल पुरानी यह प्रसिद्ध संत १००८ श्री गुरु कान्हा बाबा समाधि क्षेत्र के लोगों की श्रद्धा और विश्वास का प्रमुख केन्द्र है। इस पवित्र समाधि स्थल पर जो भी भक्त अपने मन में श्रद्धा के साथ कोई भी मुराद लेकर आया, वह कमी बाबा के दरबार से खाली हाथ नहीं लौटा। बाबा ने अपने भक्तों की सभी मनोकामना पूरी कर अनेको चमत्कार दिखाएं हैं। जिसके चलते यह पवित्र समाधि स्थल आज पूरे जिले ही नहीं प्रदेशभर में आस्था का केन्द्र बन गया है। इंदौर-बैतूल राष्ट्रीय मार्ग ५९ पर ४०० वर्ष पुरानी बात है जब संत श्री कान्हा बाबा का जन्म संवत १६२७ को माघ सुदी चैदस को ग्राम सौताड़ा तहसील हरदा जिला होशंगाबाद के बाघरे परिवार में हुआ। उस समय परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी । उनके माता-पिता मुम्य व्यवसाय मजदूरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। कान्हा बाबा के जन्म के साथ ही परिवार में सपन्नता आने लगी। बाल्यकाल से ही इस नन्हें बालक कान्हा में भजन पूजन में विशेष रुचि दिखाई देती थी म्योंकि इस अनोखे बालक कान्हा के माता-पिता जब मजदूरी के लिए घर से जाते थे तो वह अपने बेटे कान्हा को आस-पड़ोस के घरों में छोड़ जाया करते थे। जहां बालक कान्हा भगवान के भजनों में तत्लीन रहता था। कान्हा बाबा जब सात वर्ष की आयु में पहुंचे तो माता-पिता का साया उनके सिर से उठ गया और नन्हा बालक कान्हा अकेला ही रह गया। तब ही ग्राम सोडलपुर में रहने वाले मांगुल्ले परिवार जो की कान्हा बाबा के मामा होते थे, जिन्होंने कान्हा बाबा को सोडलपुर ले आए। मामा परिवार भी तंगहाली से गुजर रहा था । बाबा का मामा परिवार भी मेहनत मजदूरी कर अपना भरण-पोषण करता था। इस दौरान बालक रूपी कान्हा बाबा को बिना काम के रहना अच्छा नहीं लगता था। कान्हा आठ-नौ साल की अल्प आयु में मेहनत दृ मजदूरी का काम तो नहीं कर सकता था किन्तु इस बालक ने पशुओं को चराने का काम शुरू कर दिया। मवेशी चराते समय श्री कान्हा बाबा को विचार आया कि आदमी मरता है, फिर जन्म लेता है। जन्म और मरण के भंवर में गोते
लगाता आदमी गरीब म्यों होता है। अमीर म्यों नहीं होता । रात और दिन म्यों होते है। अन्य इसी तरह के अनेकों विचारों में खोये रहते थे। इन विषयों पर जब वे अपने मामा परिवार में चर्चा करते तो उनकी मामी ने उन्हें सलाह दी कि आप कोई गुरु के पास जाकर उनके द्वारा बताए मार्ग पर भक्ती करें, तब ही आपको सारे प्रश्नों का उमर मिल जाएगा तब श्री कान्हा बाबा ने सच्चा गुरु प्राप्त करने के लिए भक्ति करना प्रारंभ कर दिया। तब उन्हें एक व्यक्ति ने श्री रामदास स्वामी से मिलने का कहा और कहा कि वे इस वक्त ग्राम चारखेड़ा में हैं तब श्री कान्हा बाबा श्री रामदास स्वामी के पास पहुंचे और स्वयं को अपना शिष्य बनाने का अनुरोध किया। तब श्री रामदास स्वामी ने कहा कि मैं तो गुरु दीक्षा नहीं देता किन्तु तुम्हारी बाई (रामदास स्वामी की पत्नी)गुरु दीक्षा दें तो उनसे ले लो। अपने पति के आदेश अनुसार श्री रामदास स्वामी की पत्नी प्रणालीबाई ने श्री कान्हा बाबा को गुरु दीक्षा प्रदान की। तब से ही गुरुमाता के मागदर्शन में कान्हा बाबा प्रभु की भक्ति करने लगे। गुरुदीक्षा के बाद श्री कान्हा बाबा ने कहा कि मनुष्य के लिए कर्म ही प्रधान है। यही कर्म करना ही मेरा भी प्रथम कर्तव्य है और यही गुरुवाणी है। कर्म के बिना कुछ नहीं पाया जा सकता इसलिए उन्होंने कर्तव्यों का पालन करना शुरू कर दिया। तब वे गांव के सभी मवेशियों को एकत्रित कर जंगल में चरने छोड़ स्वयं अपनी कंबल बिछाकर निराकार निर्गुण रूपी ब्रम्ह का ध्यान करने बैठ जाते। उधर सारे मवेशी आसपास ही विचरण किया करते थे। वहीं शाम के वक्त मवेशियों के रंभांने की आवाज सुनकर श्री कान्हा तपस्या से उठकर उन्हें गांव की ओर ले आते थे। कुछ समय बाद श्री कान्हा ने ग्राम पटेल की मवेशी चराने का कार्य शुरू किया। तब ग्राम पटेल ने उनके कार्य से खुश होकर अपना अन्न धन सभी की देखभाल का कार्य कान्हा बाबा को सौंप दिया और ग्राम पटेल ने बालक कान्हा के सुपुर्द सभी कार्य छोडकर स्वयं कुंभ स्नान करने तीर्थराज प्रयाग जाने का मन बना लिया। ग्राम पटेल अपने मित्रों के साथ कुंभ स्नान के लिए प्रयाग की ओर निकल पड़े। छरू माह बाद ग्राम पटेल जब गांव वापस आए तब गांव के रास्ते में एक कुटिया बनी हुई मिली। उसे देखकर विचार करने लगे की इस जंगल में यह झोपड़ी किसने बनाई होगी। उन्होंने आवाज मी लगाई लेकिन वहां कोई नही था। दर असल यह झोपड़ी कान्हाबाबा ने बनाई थी। और श्री कान्हा तो मवेशी चराने जंगल चले गए थे। तीर्थवासी गांव की ओर आ गए। जब सभी ग्रामवासी परंपरा के अनुसार तीर्थयात्रियों को लेने के लिए गांव के बाहर आए तब तीर्थवासियों को कान्हा नहीं दिखाई दिए। ग्राम पटेल ने पूछा कि म्यों भाई कान्हा नजर नही आ रहे है। म्या उसे मालूम नहीं कि आज तीर्थवासी आ गए हैं। तब ग्रामवासियों ने कहा कि वह गांव में नहीं रहते हैं। गांव के बाहर कुटी बना कर रहते हैं। तब पटेल ने बताया कि वह तो प्रयाग गया था और उसने वहां हम लोगों से भेंट की थी और हम सबने उसे अपने घर के लिए प्रसाद दिया था। वह उसने सब लोगों को दिया या नहीं? तब ग्रामवासियों ने बताया कि कान्हा बाबा ने प्रसाद दिया तो हमने उन्हें झूठा और फरेबी समझकर कान्हा बाबा के साथ दुव्र्यवहार किया था। म्योंकि कान्हा सदैव गांव में ही दिखाई देता था। कान्हा बाबा को ग्रामवासियों से मालूम हुआ कि तीर्थवासी आ गए हैं तो कान्हा बाबा उनसे मिलने को व्याकुल हो गए और उनसे मिलने गांव में आ गए। श्री कान्हा को देखकर पटेल और सभी ग्रामवासी प्रसन्न हो गए म्योंकि जब तीर्थराज प्रयाग का प्रसाद ग्रामीणों को दिया था तो सभी ने उन्हें बुरा-भला कहा था। तब ही से वे गांव से बाहर आकर कुटी बनाकर रहने लगे थे। इसी प्रकार बाबा ने अपने जीवन में कई चमत्कारिक उदाहरण ग्रामीणों को दिए। समाधि ग्रहण - श्री गुरु कान्हाजी महाराज ने घिस्या तेली पर परचा दिया इसके बाद से गुरु कान्हाजी का स्वागत , मान-सम्मान ज्यादा होने लगा। ये भोले संत थे इसलिए मान-सम्मान से बहुत दूर रहना चाहते थे। म्या सम्मान, म्या अपमान इस विषय से कोई मतलब नहीथा। वे तो भजन, भक्ति एवं दूसरे के दुरूख दूर करने में ही मस्त रहते थे। लोगों के दुरूखी करने के चलते भक्तोंने इनका सम्मान ज्यादा करना प्रारंभ कर दिया जबकि बाबा कान्हा इन सभी से कोसों दूर रहना चाहते थे। उनके जीवन में इन चीजों के लिए कोई स्थान नही था। परोपकार करने से उनकी भगवत भक्ति में कठिनाई आने लगी थी एक दिन भक्त मंडली बैठी थी तब ही श्री गरु कान्हाजी महाराज ने कहा कि अब मैं इस सांसारिक जीवन को त्यागकर समाधि लेना चाहता हंू। इस बात से सभी भक्त मंडली आश्चर्यचकित रह गई कि गुरुजी अगर समाधि ले लेंगे तो ग्रामीणों का म्या होगा। तब सभी ने कहा कि यदि आप समाधि ले लेंगे तो हमारा म्या होगा। हमारी विपमि कौन हरेगा, मुसीबत में कौन रास्ता बताएगा। सभी लोगों ने उनके सम्मुख अपने अपने विचार रखे। किन्तु सच्चे संत की वाणी अटल होती है। उन्होंने कहा कि इन सब बातों को मैं तुम्हारे पास तक ही नही आने दूंगा और जब भी किसी पर मुसीबत आई और उसने सश्चे मन से मेरा स्मरण किया तो मै स्वयं उसकी मदद को आ जाऊंगा। संत श्री कान्हाजी ने कहा कि मेरी समाधि के लिए मैं स्थान का चयन करना चाहता हंू। तब एक भक्त ने कहा बाबा आपकी समाधि के लिए हमने गांव में एक स्थान चयनित किया है आप उसे चलकर देख लीजिए। वह स्थान श्री बसंत कुमारजी चैरे पंडित जी के घर के पास आज भी है। श्री गुरु महाराज उस जगह को देखने आए और कहा यहां यह जगह समाधि के लिए उपयुक्त नहीं है। जिस जंगल में उन्होंने आजीवन मवेशियों को चराया और भक्त की उपासना की है उसी जंगल में ही समाधि के लिए स्थान चयनित किया और अगहन सुदी पूर्णिमा संवत १६५३ को भक्तों के इस सदगुरु ने समाधि ग्रहण कर ली । यह जीवित समाधि है इसलिए जिसने जब भी किसी भी तकलीफ में कान्हा बाबा को याद किया वे उसकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। यह मेला उन्हीं की याद में अगहन सुदी पूर्णिमा से भरता है और इस समाधि स्थल का निर्माण लगभग सन् १७२२ में हुआ है। यह पवित्र समाधि स्थल एक ही रात्रि में बनी हुई है। यह समाधि खेमा सदा नामक कारीगर के हाथों से निर्मित बनाई गई है। समाधि रात्रि में ही बनाकर सुबह ब्रह्म मुर्हूत में कलश एवं चरण पादुका की स्थापना करके खेमा सदा नामक कारीगर ने अपने प्राण त्यागकर ब्रह्मलीन हो गए। आज उनकी समाधि मंहतों की समाधियों से सर्व प्रथम बनी हुई है।
दीपमाल स्तंभ करते हैं सभी को आकर्षित
श्री गुरु कान्हा बाबा समाधि से कुछ दूरी पर दोनों ओर दीपमाल स्तंभ श्री रामशंकर जी पटेल के पूर्वज श्री रामलालजी की स्मृति में रामगोपाल जी , गेदांलाल जी ,चंपालाला जी पटेल द्वारा अगहन सुदी पूर्णिमा संवत् २०१० में बनवाए गए तभी से त्यौहारों पर इन दीपमाल पर आज भी दीपक लगाएं जाते हैं जो समाधि स्थल पर आने वाले भक्तों के आर्कषण का केन्द्र होते हैं।
-श्रद्धालुओं के घर के बने शुद्ध घी से जलती है ज्योत
श्री गुरु कान्हा बाबा के समाधि स्थल पर विगत ११ वर्षों से अखंड ज्योत प्रज्वलित है। इस ज्योत के लिए गांव सहित आसपास के गांवों के भक्तजनों द्वारा अपने घरों में बनाएं जाने वाले शुद्ध घी को स्त्रोत के लिए दान किया जाता है। इस ज्योत को जगाए रखने में क्षेत्र के गवली समाज का विशेष योगदान रहता है। समाज के लोग अपने पशुधन के पहले दूध से बना माखन, घी यहां अवश्य भेंट करते हैं।
- यहां कोई भी भक्त खाली हाथ नही
लौटता श्री गुरू कान्हा बाबा समाधि स्थल पर किसी भी तरह की मनोकामना को लेकर
आने वाला भक्त कभी मी खाली हाथ नही लौटा है। यहां पर जिन परिवारों में पुत्र प्राप्ति या संतान प्राप्ति की कामना की जाती है। वे गोबर या कुमकुम हल्दी के उल्टे हथेले के छापे लगा देते है।और मुराद पूरी होने पर सीध हथेले लगाकर बाबा का आभार जताते है। इसी प्रकार अनेको प्रकार की मन्नतों पूरी होने पर गुड , अनाज व फल से तुलादान किया जाता है। वही क्षेत्र की सभी समाजों द्वारा वैशाख के महीने में बाबा का भंडारा भी किया जाता है।
- निशान चढ़ाने का विशेष महत्व
श्री गुरू कान्हा बाबा पर भक्तों द्वारा मन्नत मांगने दौरान ध्वज रूपी निशान चढ़ाया जाता है। इस ध्वजा की पूजा समाधि स्थल पर महंत द्वारा कराई जाती है। बताया जाता है कि कान्हा बाबा की
ध्वजा जैसी लहराती है वैसे ही मन्नत मांगने वाले की मी ध्वजा लहराती है।
- चांदी की चरण पादुका
श्री गुरू कान्हा बाबा समाधि स्थल पर रखे चरण पर दस वर्ष पूर्व अशोक रात्रे के बीमार होने पर मन्नत मांगी गई थी कि यदि वे शीघ्र ठीक होते तो समाधि स्थल पर चरण पादुका भेट की जाएंगी। जिस पर उनके स्वस्थ्य होने पर उनकी सास निर्मलाबाई सत्यनारायण गुर्जर ने सवा किलो चांदी की चरण पादुका दान की थी। वही गांव के सुन्दरलाल मालवीय निर्मोही द्वारा दो वर्ष पूर्व श्रद्धा से लगभग दो किलो चांदी की चरण पादुका दान की गई है । जिसे पूर्ण विधि विधान से स्थापित की गई ।
साखी
शरण साई के आइया, नीरा निकट हजूर। बिना पेड़ को वृक्ष है, जाके डार न मूर ।। १ ।।
शरण साई के आइया, बाहर भीतर सार। रात दिवस पहरे वामे, समझे नहीं लगार ।।2।।
एक वृक्ष के फल है सारा, कोई खाटा है कोई मीठा। पेड़ विह्ना वृक्ष है, गुरु परतापों दीठा ।।3।।
बटक बीज को पेड़ है, गिन न अनभे सोय। तीन लोक बामे बसे, बड़ा अचम्भा मोय ।।4।।
मुम्त मंजन कोट रवि, ऐसा है करतार। यही साख समझो नहीं, गयो जमारों हार ।।5।।
झिल झिलात हम देखिया, कोट सूर्य उचियार। या साखी समझे तो, तिरत न लागे बार ।।6।।
आरती गुरु कान्हा बाबा
आरती केवल ब्रम्ह की कीजै, अमृत नाम सदा रस पीजे ।।टेक।।
चन्द्र न पवन नहि स्वासा, जहां पहुंचे कोई बिरले दासा ।।1।।
सबदूर पूरण अलख अनन्दा, ज्यों दल मद्धे दीसे चन्द्रा ।।2।।
तीरथ व्रत उर प्रतिमा की आसा, वे नर पावे गर्भ निवासा ।।3।।
आलम डूबो ब्रम्ह के माही, अन्धी दुनिया सूझत नाहीं ।।4।।
सब घट व्यापक सबही के पासा, ज्यों फूल मद्धे रहत है वासा ।।5।।
कहें रामदासजी, अदेख लखावे जौनी सकट बहुर न जावे ।।6।।
आरती पारी ब्रम्ह तुम्हारी, तुम से काया राम बनी हमारी ।।टेक।।
काया नगरी में तेरह दरवाजे, तीन गुप्त दस प्रगट विराजे ।1।
अष्टकमल माहीं प्रभुजी को वासा, मन दीपक जहां तेज प्रकाशा ।2।
भूली दुनिया प्रतिभा को ध्यावे, जौनी संकट फिर-फिर आवें ।3।
निगुण ब्रम्ह में सचराचारा, जाकी तरंग उठी संसारा ।4।
आखंड ब्रम्ह सकल से न्यारा, कोट भतनु जहां है उजयारा ।5।
कहें रामदासजी, राखो विश्वासा एक ही ब्रम्ह सकल के पासा ।6।
साद प्रणाली (महन्त)
बंस के प्रथम पूजन जी इनके पुत्र खेमाजी पुत्र प्रेमचन्द्र जी चतरूजी, परसराम जी, चिन्तामन जी, नरसिंग जी, केशव जी। गुरु महाराज श्री कान्हा जी महाराज की समाधि ग्रहण करने के बाद से सेवा करने वाले तो पुजारी (महन्त) हुए उन्हें साद कहां गया साद कहां से हुए (महन्त)
1. प्रथम - श्री चिन्तामन जी साद हुये।
2. दूसरे - श्री उमाकर जी साद हुये।
3. तीसरे - श्री इकाजी साद हुये।
4. चैथे - श्री कालू जी साद हुये।
5. पांचवें - श्री हरचन्द्रजी साद हुये।
6. छठवें - श्री भीकाजी साद हुये।
7. सातवें - श्री धनाजी साद हुये।
8. आठवें - श्री चरणदास जी साद हुये।
9. नवमें - श्री शंकरदस जी साद हुये।
10. दसवें - श्री शीतलदास जी साद जो हैं आज ग्रंथ लिखते समय वर्तमान में श्री कान्हाजी की गादी पर विराजमान है।
कर्मनगरी बनी धर्मनगरी - गुरु कान्हाबाबा की कर्म नगरी सोडलपुर उनके चरणों से ऐसी धन्य हुई है कि यहां के निवासी सदैव कान्हाबाबा का स्मरण मन में रख हमेशा कर्म को महत्व देते हैं। कर्म के अलावा कान्हाबाबा का प्रताप यहां के निवासियों में धर्म की अलख भी जगाए हुए है। इसी के चलते शनैरू शनैरू यह नगर कर्मनगरी के साथ धर्मनगरी का रूप भी ले रही है। शास्त्रों मं ेकहा गया है कि यदि सद्गुरु की प्राप्ति हो जाए तो मनुष्य भव से पार हो जाता है। इसी के चलते गुर्जर और माली समाज बाहुल्य ग्राम सोडलपुर के मेहनती, कर्मठ किसानों की कर्मनगरी सोडलपुर सद्गुरु कान्हा बाबा की कृपा से आज धर्म नगरी में बदल गई है। यहां निवास करने वाला हर परिवार अपनी कड़ी मेहनत से अपने परिवार का भरणपोषण् कर रहा है किन्तु यहां हर व्यक्ति में गुरु कान्हा बाबा के प्रति सच्ची आस्था और विश्वास से यह गांव सपन्नता, खुशहाली, कृषि, व्यवसाय और राजनीति में भी जिले में अव्वल बना हुआ है। यह सब किसी ना किसी रूप में इस नगरी में निवास करने वाले लोगों पर कान्हा बाबा का आशीर्वाद ही है यहां पर प्रतिदिन भक्तों द्वारा सुबहशाम श्री कान्हा बाबा समाधिस्थल पर पूर्ण आस्था के साथ मत्था टेक बाबा का आशीर्वाद प्राप्त कर क्षेत्र में खुशहाली के लिए कामना की जाती है। वहीं परिवार में शुरू होने वाले किसी भी धार्मिक व मांगलिक आयोजन में सर्व प्रथम कान्हाबाबा को पूजा जाता है।
Jay shri kanah baba
ReplyDeleteजय गुरुदेव कान्हा बाबा
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